होली कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है (Holi Kab, Kyon Aur Kaise Manaya Jata Hai)

होली भारत में मनाई जाने वाली सबसे लोकप्रिय त्योहारों में एक है जिसे भारत में हर साल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

यह त्योहार रंग गुलाल, प्रेम भाव और आस्था का प्रतीक है जिसे हमारे भारत देश में हर उम्र के लोग और हर धर्म के लोग आपस में मिलजुल कर बड़े प्रेम भाव से मनाते हैं। हमारे देश के लोगों को होली के त्योहार का बड़े ही बेसब्री से इंतजार होता है। लोग होली के दिन को बड़े ही धूमधाम से नाच गाने के साथ मनाते हैं और इस दिन सभी के घरों में कई तरह के अलग अलग पकवान और दूसरी खाने पीने की चीजें भी बनाए जाते हैं। 

होली का त्योहार बहुत ही खास होता है, यह दिन लोगों के जीवन में एक नया रंग और उत्साह लेकर आता है। हमारे भारत देश में जितने भी त्योहार मनाए जाते हैं उन सभी त्योहारों के पीछे कोई ना कोई इतिहास जरूर होता है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है और हमारे धार्मिक परंपराओं को भी उजागर करता है, ऐसे ही होली मनाने के पीछे का भी एक इतिहास है जिसके बारे में हम आपको नीचे अपने इस पोस्ट में बताएंगे, लेकिन होली मनाने के पीछे का इतिहास जानने से पहले हम होली कब मनाते हैं, इसके बारे में जानते है।

होली कब मनाया जाता है

होली हर साल वसंत ऋतु में मनाया जाता है और हिन्दू पंचांग के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्योहार को फाल्गुन मास में मनाने के कारण इसे फाल्गुनी त्योहार (या फिर फागुन) के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार वसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है। होली, वसंत ऋतु में बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाए जाता है इसलिए लोग इसे वसंतोत्सव का त्योहार भी कहते हैं।

होली क्यों मनाया जाता है

होली के त्योहार को मनाने के पीछे की कहानी हिरण्यकश्यप नाम के राक्षस से शुरू हुई थी। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का विरोधी था इस कारण से वह अपने पुत्र प्रहलाद से हमेशा नाखुश रहता था।

हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र को समझाया की वह भगवान विष्णु की पूजा ना करे, किंतु प्रहलाद ने अपने पिता की बात मानने से इंकार कर दिया। जिससे परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई तरह से भयभीत किया, परन्तु प्रहलाद डरे नहीं और भगवान विष्णु की पूजा करते रहे, अंत में हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने का निर्णय किया। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए कई सारे तरीके अपनाए लेकिन वह प्रहलाद को मारने में असफल रहा क्योंकि प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।

हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि उसे आग नहीं जला सकती है, इसलिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठने को कहा, होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, प्रहलाद भगवान विष्णु को स्मरण करने लगे, तभी अचानक होलिका जलने लगी उसी समय आकाशवाणी हुई, जिससे उसको यह याद दिलाया गया की यदि वह वरदान का दुरुपयोग करेगी तो स्वयं जल जायेगी। प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति के कारण कुछ भी नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई, इसे ही होलिका दहन के नाम से जाना जाता है, इसे प्रत्येक वर्ष बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए याद किए जाता है और इसे त्योहार के रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

होली कैसे मनाया जाता है

होली का त्योहार बड़े ही उत्साह से पूरे विश्व में मनाया जाता है। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली भारत में मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है। यह रंगों का त्योहार मुख्य रूप से दो दिन मनाया जाता है, जिसके पहले दिन होलिका जलाई जाती है। होलिका दहन का पहला काम एक डंडा गड़ना होता है जो की होलिका का प्रतीक माना जाता है। डंडे को किसी सार्वजनिक स्थान पर गाड़ा जाता है, इसके लिए काफी दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती है। होली का पहला दिन होलिका दहन कहलाता है।

इस दिन गाड़े हुए डंडे के पास बहुत सारे लकड़ी इकट्ठी की जाती है, जो की लोग अपने अपने घरों से लाकर इकठ्ठा करते हैं। गाड़े हुए डंडे (और लकड़ियों) के पास सुबह से ही विधिवत पूजा होता है और घरों में पकवान बनाए जाते है और उसका भोग लगाया जाता है। शाम को सही मुहूर्त पर होलिका दहन किया जाता है। लोग देर रात तक नाचते और गाते है। होलिका दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है।  

होली के दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग, गुलाल लगाते हैं और नाच गाना भी करते हैं और घर घर जाकर एक दूसरे को होली की बधाई देते हैं। होली के त्योहार के दिन सभी के घरों में मीठे पकवान बनाए जाते हैं, खास कर गुजिया बनाई जाती है, इसके अलावा विभिन्न प्रकार के नमकीन और मिठाई बनाने का रिवाज भी है। होली के दिन लोग पुरानी दुश्मनी को छोड़ कर एक दूसरे को गले लगा कर एक नई शुरुआत करते हैं और होली की बधाई देते हैं। होली के दिन दोपहर तक लोग रंग गुलाल और नाच गाना करते हैं और उसके बाद लोग नहा धोकर नए नए कपड़े पहनते हैं और सबसे मिलते जुलते हैं।

होलिका पूजन विधि

होलिका पूजन करने के लिए लकड़ी और कंडो की होलिका के साथ घास लगाते है और इसका पूजन करने के लिए सबसे पहले हाथ में असद, फूल, सुपारी और पैसा आदि लेकर पूजन पर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दिया जाता है और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल और गुलरी की माला पहनाया जाता है। इसके बाद सभी लोग होलिका की परिक्रमा करते है और नारियल का गोला, गेहूं की बाली और चना का प्रसाद सभी में बाँटा जाता है।

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